बढ़ रहे आत्महत्या के केस | Atma hatya Article in Hindi
बढ़ रहे आत्महत्या के केस
कोरोना वायरस ( कोविड -19 ) ने एक ऐसी महामारी का रूप ले लिया है जिसकी चपेट से शायद ही कोई व्यक्ति बच पाया हो। किसी की नौकरी गई , किसी का धंधा चौपट हुआ और किसी का कोई अपना चल बसा। हमारे बीच तमाम बॉलीवुड अभिनेता हैं जिन्होंने अपने काम से समाज को एक पाठ पढ़ाने का प्रयत्न किया है। ऐसा ही एक नाम सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput)का था जिन्होंने कल सुबह मुंबई में आत्म हत्या कर ली। टैलेंट और अच्छे व्यक्तित्व के धनी सुशांत मात्र 34 वर्ष के थे। आश्चर्यजनक बात यह है की उनकी हाल ही में एक फिल्म रिलीज़ हुई थी जिसका नाम " छिछोरे " ( chhichhore movie)था जो एंटी सुसाइड थीम (Anti Suicide Theme) पर बनाई गयी थी। अगर सूत्रों की बात मान लें तो इस आत्म हत्या की वजह अवसाद यानि डिप्रेशन है जो की आज हर तीसरे इंसान में पाया जाता है।
आत्महत्या (suicide) दरअसल जीवन से हार जाने का नाम है । यह एक तरह की कायरता है जो व्यक्ति जिंदगी से लड़ नहीं पाता वो खुदकुशी जैसे काम कर लेता है ।
आत्म हत्या से रिलेटेड आंकड़े ( Suicide Statistics )
विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organization) ने हाल ही में दुनियाभर में होने वाली आत्महत्याओं को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी , जिसके मुताबिक दुनिया के तमाम देशों में हर साल लगभग आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं, जिनमें से लगभग 21 फीसदी आत्महत्याएँ भारत में होती हैं। आँकड़े बताते हैं कि दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़े यह भी खुलासा करते हैं कि आबादी के प्रतिशत के लिहाज से गुयाना, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के हालात भी ज्यादा चिंताजनक हैं । नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (National Crime Records Bureau ) के तुलनात्मक आँकड़े भी बताते हैं कि भारत में आत्महत्या की दर विश्व आत्महत्या दर के मुकाबले बढ़ रही है । भारत में पिछले दो दशकों की आत्महत्या दर में एक लाख लोगों पर 2.5 फीसदी वृद्धि हुई है। आज भारत में 37.8 फीसदी आत्महत्या करने वाले लोग 30 वर्ष से भी कम उम्र के हैं। दूसरी ओर 44 वर्ष तक के लोगों में आत्महत्या की दर 71 फीसदी तक बढ़ी है ।
आत्म हत्या से रिलेटेड आंकड़े ( Suicide Statistics )
विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organization) ने हाल ही में दुनियाभर में होने वाली आत्महत्याओं को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी , जिसके मुताबिक दुनिया के तमाम देशों में हर साल लगभग आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं, जिनमें से लगभग 21 फीसदी आत्महत्याएँ भारत में होती हैं। आँकड़े बताते हैं कि दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़े यह भी खुलासा करते हैं कि आबादी के प्रतिशत के लिहाज से गुयाना, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के हालात भी ज्यादा चिंताजनक हैं । नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (National Crime Records Bureau ) के तुलनात्मक आँकड़े भी बताते हैं कि भारत में आत्महत्या की दर विश्व आत्महत्या दर के मुकाबले बढ़ रही है । भारत में पिछले दो दशकों की आत्महत्या दर में एक लाख लोगों पर 2.5 फीसदी वृद्धि हुई है। आज भारत में 37.8 फीसदी आत्महत्या करने वाले लोग 30 वर्ष से भी कम उम्र के हैं। दूसरी ओर 44 वर्ष तक के लोगों में आत्महत्या की दर 71 फीसदी तक बढ़ी है ।
गौरतलब है कि कुछ समय पहले केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) की रिपोर्ट में कहा गया था कि देश के साढ़े छह करोड़ मानसिक रोगियों में से 20 फीसदी लोग अवसाद (Depression) के शिकार हैं । ऐसी भी आशंका है कि सन् 2020 तक अवसाद (depression) दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी के रूप में उभरकर सामने आएगा । आत्महत्याओं की दृष्टि से महाराष्ट्र (Maharashtra) का स्थान प्रथम है, उसके बाद तमिलनाडु (Tamil Nadu) तथा पश्चिम बंगाल (West Bengal) का स्थान है। चिंता की बात यह है कि भारत में आत्महत्या करने वालों में बड़ी तादाद 15 से 29 साल की उम्र के लोगों की है । यहाँ यह रेखांकित करने वाली बात है कि देश के कई हिस्सों में गरीब किसानों के द्वारा की जाने वाली खुदकुशी की घटनाएँ भी किसी से छिपी नहीं हैं । केन्द्र सरकार के आँकड़े बताते हैं कि 2016 के शुरूआती 3 महीने में ही 116 किसानों ने आत्महत्या की थी ।
आत्म हत्या के मुख्य कारण (Reasons of Suicide in India)
हर बार जब भी परीक्षा परिणामों (exam results ) की घोषणा होती है तभी देश के हर हिस्सों से आत्महत्याओं की खबरें आती ही हैं । दरअसल, आज अभिभावक बच्चों से पढ़ाई और कॅरियर को लेकर बहुत अधिक उम्मीदें रखने लगे हैं । माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए वे जी-तोड़ मेहनत भी करते हैं लेकिन कई बार वे अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं तो निराशा के चलते बच्चे खुदकुशी जैसा घातक कदम उठा लेते हैं । इसे विडम्बना ही कहिए कि यंग जनरेशन की बढ़ती आत्महत्याओं के जिम्मेदार न केवल पेरेन्ट्स, टीचर तथा पड़ोसी हैं बल्कि पूरा समाज ही है । बढ़ते बच्चों को देखकर हर कोई अपना नजरिया उस पर थोपने लगता है । अरे क्या कर रहे हो ? अगर साइंस (science) विषय लिया है तो कहेंगे काॅमर्स (commerce) क्यों नहीं लिया। अरे आजकल मीडिया में बहुत स्कोप है तुम्हें तो वही करना था । ढेरों उदाहरण उसे दे देंगे । ऐसी स्थिति में अभिभावक ही वह कड़ी है जो अपने बच्चों को समझ सकते हैं, समझा सकते हैं । दुनिया उन्हें गलत समझे बच्चे बर्दाश्त कर लेते हैं लेकिन अभिभावक उन्हें गलत समझें ये बच्चे बर्दाश्त नहीं कर पाते ।
इसके अलावा आजकल हर व्यक्ति के अंदर अच्छा घर, कार और आधुनिक जीवन ( better lifestyle) की सभी सुख-सुविधाएँ हासिल करने की लालसा बढ़ती जा रही है। इसके लिए वह जद्दोजहद भी करते हैं । ऐसे में वह अपने सपनों को जल्दी पूरा करना चाहता है । सपने टूटते हैं और अपेक्षाएँ पूरी नहीं होती हैं तो आत्मविश्वास (self belief) हिल जाता है । इसी के चलते लोग जिंदगी से मायूस हो जाते हैं । कभी प्रेम में निराशा ( heart break) मिलने पर तो कभी आर्थिक तंगी (financial problem) , गृहकलह, दहेज ( dowry ) के कारण भी आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं । लंबी, गंभीर या पीड़ादायक बीमारी भी व्यक्ति को कभी-कभी निराशा की ऐसी चरम स्थिति में ले जाती है जब वह स्वयं का अंत कर लेना चाहता है ।
हकीकत यह है कि व्यक्ति को हमेशा बीमारी मृत्यु तक लेकर नहीं जाती । कई मर्तबा बीमारी से पहले व्यक्ति खुद को मृत्यु तक ले जाता है और आत्महत्या कर लेता है ।
हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि क्या वास्तव मं जीवन को खत्म कर लेना इतना आसान है ? हमारे समाज में ऐसा क्या है कि व्यक्ति अपने मन की दुविधाओं, दुखों और पीड़ा को किसी से साझा नहीं करता ? यदि वह ऐसा करे तो शायद उसके दबाव को कम किया जा सकता है । एक सवाल स्वास्थ्य सेवाओं में काम करने वाले लोगों के मानवीय होने का भी है । डाॅक्टरों को मरीजों से उनके परिजनों से भावनात्मक रिश्ता रखना भी जरूरी है । बेहतर संवाद से भी बेहतर इलाज होता है इसका ध्यान भी रखना जरूरी है ।
परीक्षाफल और जिंदगी से मायूस हुए लोगों को सांत्वना देने का काम परिजनों के अलावा उसके दोस्त तथा रिश्तेदारों का भी है । पैरेन्ट्स के बाद अगर कोई बच्चों को करीब से देखता है तो वो है टीचर । उन्हें बच्चों की आपस में तुलना न करके सामुहिक विकास पर बल देना चाहिए । बातचीत के माध्यम से निराशाजनक स्थितियों से गुजर रहे मनुष्य के अंदर जीने की इच्छाशक्ति को मजबूत किया जाना चाहिए । उन्हें जीवन के संघर्ष से घबराने के बजाय मुकाबला करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए । दरअसल पूरे सामाजिक परिपेक्ष्य में एक सकारात्मक सोच व दृष्टिकोण की जरूरत है ।
आत्मा हत्या के विचार से बचने के उपाय : Atma Hatya ke vichar se bachne ke upaye .
1 ) अपने माता पिता , भाई बहन या परिवार का कोई सदस्य जिसके सामने आप सहज हों उनसे अपने मन की बात शेयर करें।
2 ) अपने आप को व्यस्त रखें। इससे आप बुरे विचारो से बच पाएंगे।
3 ) जिस काम में आपकी रूचि हो उसको ज्यादा से ज्यादा करें। यह काम बाग़वानी से ले तक संगीत सुनने तक कुछ भी हो सकता है।
4 ) अपने ख़ास मित्रो से अपने मन की बात शेयर करें। ऐसा न सोचे की वे आपके बारे में क्या सोचेंगे क्यूंकि दोस्ती का मतलब ही सुख दुःख में साथ रहना होता है।
5 ) प्रोफेशनल एडवाइस के लिए किसी मनोचिकित्सक के संपर्क में रहे। जैसे की आप एक साधारण बुखार के लिए डॉक्टर के पास जाते है वैसे ही इसके लिए भी जाएँ। यह कोई पाप की श्रेणी में नहीं आता है जिसे आप अपने तक रख कर घुटते रहे।
3) Immunity Booster Haldi Ka Dudh (Turmeric Milk, Golden Milk)
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